दिल्ली की अदालतों के बाहर आज अद्वितीय नज़ारा देखने को मिला। काले कोट पहने वकीलों का सैलाब सड़कों पर उतर आया और जगह-जगह न्याय की गूंज सुनाई दी।
विवादित आदेश बना वजह
13 अगस्त को उपराज्यपाल (LG) ने एक विवादित आदेश जारी किया था, जिसके तहत पुलिस अधिकारियों को अपने-अपने थानों से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिये गवाही देने की अनुमति दी गई। इस आदेश का दिल्ली की वकालत बिरादरी ने कड़ा विरोध किया।
22 अगस्त को वकीलों ने सभी ज़िला अदालतों में हड़ताल का ऐलान किया, लेकिन जब सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की तो 25 अगस्त को वकील सड़क पर उतर आए।
अदालतों के बाहर प्रदर्शन
आज तिस हज़ारी कोर्ट, रोहिणी कोर्ट और साकेत कोर्ट के बाहर वकीलों ने ज़ोरदार प्रदर्शन किया। चारों तरफ नारे गूँज रहे थे –
“काला कानून वापस लो”
“वकील एकता ज़िंदाबाद”
“तानाशाही नहीं चलेगी”
“LG साहब होश में आओ”
“BJP हाय-हाय”
“LG मुर्दाबाद”
अदालतों के भीतर कुर्सियाँ खाली पड़ी थीं, लेकिन बाहर वकील न्याय के लिए आवाज़ बुलंद कर रहे थे।
वकीलों का तर्क
वकीलों का कहना है कि यह आदेश न केवल ग़ैरकानूनी है बल्कि न्याय व्यवस्था की पारदर्शिता और निष्पक्ष सुनवाई के सिद्धांत पर भी हमला है। उनका आरोप है कि अगर गवाह थानों से बयान देंगे तो उन पर दबाव डाला जा सकता है, जिससे आपराधिक न्याय प्रणाली खतरे में पड़ जाएगी।
आंदोलन को मिला बड़ा समर्थन
दिल्ली हाई कोर्ट बार एसोसिएशन और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने भी इस आंदोलन का समर्थन किया है। सूत्रों से जानकारी मिली है कि कई अधिवक्ताओं ने सोशल मीडिया और WhatsApp ग्रुप्स पर साझा संदेशों में साफ़ लिखा है –
“अगर जरूरत पड़ी तो उपराज्यपाल आवास का घेराव भी किया जाएगा।”
न्याय की आत्मा की जंग
आज यह आंदोलन केवल वकीलों की लड़ाई नहीं, बल्कि न्याय की आत्मा को बचाने की जंग बन चुका है। सरकार के सामने अब बड़ा सवाल यह है कि क्या वह आदेश वापस लेगी या फिर संघर्ष और तेज़ होगा।